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लेखनी कहानी -04-Jun-2022 हरिवचन

भाग 2 : पड़ौसियों को सलाम 


कोरोना वारियर्स को सलाम की श्रंखला में मेरा अगला सलाम है भरभूती जी और तिवारी जी जैसे पड़ौसियों को । कितना विशाल हृदय है होता है ऐसे लोगों का । इस हृदय में चाहे पत्नी के लिए कोई जगह हो अथवा ना हो लेकिन साली , सैक्रेटरी, कामवाली बाई, अंगूरी भाभी और गौरी मैम जैसी औरतों के लिए हमेशा जगह होती है । इन सबका काम करने के लिए ये लोग सदैव तत्पर रहते हैं । ऐसी महाविभूतियों ने जब यह सुना कि सरकार ने दिन का लॉकडाउन घोषित कर दिया है तो मानो इनको मुंह मांगी मुराद मिल गई । इनकी बाछें खिल गई । अब तो पड़ौसन भाभीजी से रोज मुलाकात हो सकेगी । इसी उम्मीद में ये बार बार अपने कमरे में जाते हैं । अपनी खिड़की खोल के रखते हैं और हां , वो पड़ौसन फिल्म का गाना गुनगुनाते रहते हैं , " मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है " । पर बेचारे, ये खिड़की है कि खुलती ही नहीं है । अब तो शर्मा जी खिड़की को कोस कोस कर थक गये हैं । " मेरी दुश्मन है ये , मेरी उलझन है ये , बड़ा तरसाती है दिल तड़पाती है ये खिड़की , खिड़की, ये खिड़की जो बंद रहती है " ।


पत्नी कहते कहते थक गई कि घर में आटा खत्म हो रहा है । जाओ , लेकर आ जाओ । मगर ये यह कहकर टाल गये कि बाहर पुलिस का पहरा बहुत तगड़ा है और मुझे टांगें तुड़वाने का अभी कोई शौक नहीं है । इतना कहकर वो पतंग उड़ाने छत पर चले गये । छत पर पहुंचे तो उनकी तो आंखें फटी की फटी रह गई । " मेरा चांद मुझे आया है नजर " । दिल झूम उठा । " आज मैं ऊपर , आसमां नीचे " । जैसे झूमकर सावन बरस रहा हो । आखिर सामने पड़ौसन जो दिखाई दे गई थी । अंधे को क्या चाहिए,  दो आंखें । यहां तो खजाना हाथ लग गया था ।


"क्या बात है भाभीजी , आज आप ऊपर छत पर ? आज तो धन्य हो गये हम । आपके दर्शन हो गये । बस ये समझो , गंगा स्नान हो गया "। गदगद होते हुए शर्मा जी के मुंह से अचानक निकल गया ।


"ऐसी कोई बात नहीं है, शर्मा जी । मैं तो आपका ही इंतजार कर रही थी" । भाभीजी मिश्री से भी मीठे शब्दों में बोली ।


यह सुनकर शर्मा जी की तो बांछें खिल गई थीं । इस पल का कबसे इंतजार था उन्हें । आखिर आज वो दिन आ ही गया लगता है । सोचते हुए प्रसन्न मुद्रा में उन्होंने पूछा


"क्या काम आ सकते हैं भाभीजी , हम आपके" ?


"वो क्या है न शर्मा जी , घर में आज आटा खत्म हो गया था और लड्डू के भैय्या ने ' पैरव्रत' ले रखा है" । शर्माते हुए भाभीजी बोलीं ।


शर्मा जी ने चौंककर पूछा , "पैरव्रत ? ये क्या होता है भाभीजी" ?


वो बोली , "ऐसा है कि जब कोई ऐसा कठिन व्रत करता है जिसमें वो यह प्रण लेता है कि व्रत की अवधि में वह घर से बाहर एक कदम भी नहीं रखेगा , तो वह व्रत 'पैरव्रत' कहलाता है । अब लड्डू के भैय्या तो बाहर जा नहीं सकते हैं ना तो घर में आटा कौन लाये ? अब आप जैसे पड़ौसी ये काम नहीं करेंगे तो और कौन करेगा भला"? मुस्कुराते हुए भाभीजी ने कहा


यह सुनकर शर्माजी का सीना चौड़कर 58" हो गया ।


"अहो भाग्य भाभीजी , आपने हमको इस योग्य समझा । अभी लाते हैं" ।


"एक बात और शर्माजी । वो थोड़ा पुलिस का ध्यान रखना । सुनते हैं कि वो लोग बहुत मारते हैं" ।


"भाभीजी , आपके लिए तो हम आसमान से तारे भी तोड़कर ला सकते हैं। ये तो आटा ही है । और रही बात पुलिस की । तो ऐसे हप्पू सिंह बहुत देखे हैं हमने । आप चिंता मत करो। हम अभी गये और अभी आये" ।


नीचे उतर कर वो मिसेज शर्मा से बोले ।


"अजी सुनती हो । वो तुम आटा लाने के लिए कह रही थी ना । मैं अभी लाता हूं । बताओ, कितना लाना है" ?


मिसेज शर्मा उन्हें ऐसे देखने लगी जैसे ये प्राणी किसी और ग्रह से आया हो । बोली  "जब मैंने कहा था तब तो पतंग उड़ाने चले गये थे । अब अचानक कैसे याद आ गयी आटे की" ?


"तू नहीं समझेगी पगली । हम गये तो पतंग उड़ाने ही थे मगर सामने वाली पतंग खुद हमारे पास आकर गिर गई तो हम क्या करते ?। अब हम ठहरे खानदानी आदमी । हमारा कोई मान सम्मान है या नहीं, पता नहीं मगर पतंग का तो मान रखना ही था ना । खैर , छोड़ो । ये बताओ कितना आटा लाना है" ?


"10 किलो"


वो चौंके। 10 किलो ही भाभीजी ने मंगवाया है । कुल 20 किलो हो गया ये तो । कैसे लाऊंगा मैं इतना आटा ? सोचकर बोले " 5 किलो ले आऊं" ?


"

नहीं । 10 किलो ही लाना । रोज रोज कौन जायेगा ? कोरोना में बाहर नहीं निकलना है"


मरता क्या न करता । जोश जोश में चल दिये । घर से बाहर निकले ही थे कि मुख्य सड़क पर एक सितारा वाला वर्दीधारी मिल गया । कड़ककर पूछा । कौन है बे ? कहां जा रहा है ? देखता नहीं कि लॉकडाउन लगा हुआ है पूरे देश में" ?


एक सितारा वाले को देखकर

शर्माजी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई । बड़ी मुश्किल से वे इतना ही कह पाये कि आटा लाने निकले हैं । घर में आटा नहीं है।


वर्दीधारी ने कहा कि आटे दाल का समय तो सुबह 8 से 11 का है । अब शाम को 5 बजे बाहर क्यों निकले ?


"

वो घर में आटा नहीं है ना इसीलिए । रात को क्या खायेंगे "? हकलाते हुए शर्मा जी ने कहा


"अच्छा , चल थाने । वहीं दिलायेंगे तूझे आटा" । दो लठ्ठ मारते हुए पुलिस वाले ने कहा और शर्माजी को थाने ले आये ।

थाने में शर्माजी की खूब खातिरदारी की गई । ऐसी ऐसी जगह कूटा कि किसी को बता भी नहीं सकते थे । लेकिन  थानेवाले थे बहुत नेक दिल । कूटना उनका काम था और लोगों तक राशन पानी पहुंचाना उनकी जिम्मेदारी । आटे के पैकेट थाने में रखे हुए थे । उन्होंने दो पैकेट 10-10 किलो के शर्मा जी को दे दिये । पर शर्माजी की समस्या अब दूसरी थी । कुटाई के कारण खुद से चला भी नहीं जा रहा था । फिर ये 20 किलो वजन कैसे ले जाते ? पर थाने वाले भी बड़े कृपालु निकले । जैसे भक्त की पुकार भगवान सुन लेते हैं वैसे ही शर्माजी की पुकार भी थानेवालों ने सुन ली । भक्त वत्सल, दया के सागर , कृपा निधान जो ठहरे पुलिसवाले । पुलिस ने अपनी गाड़ी में शर्माजी और आटे के दोनों पैकेटों को पटका और शर्माजी को तथा आटे के पैकेटों को घर में फेंक कर चले गये। जाते जाते मिसेज शर्मा से कह गये कि ऐसे जंतुओं को घर में बांध कर रखा करो नहीं तो कोरोना राक्षस दबोच लेगा इन्हें ।


बड़ी फजीहत हुई शर्मा जी की । लेकिन कोई बात नहीं । फजीहत हुई तो क्या हुआ, भाभीजी का काम तो पूरा हो ही गया था । शर्माजी का मन आनंद के असीम सागर में गोते मारने लगा। इस आनंद में वे अपना सारा दर्द भूल गये थे । बड़ी कठिनाई से 10 किलो का पैकेट लेकर वो भाभीजी के पास पहुंचे।

"

हाय दैय्या । ये क्या हुआ शर्मा जी" ? बड़ी मुश्किल से वे इतना ही पूछ पाईं थीं ।


"

ये तो कुछ भी नहीं है भाभीजी ।  हम तो आपके लिए बड़ी से बड़ी तकलीफ़ भी उठा सकते हैं । आपके लिए तो तकलीफ़ उठाने में भी हमें बड़ा आनंद आता है । विश्वास ना हो तो कभी आजमा के देख लेना । पर एक निवेदन है भाभीजी । वो हमारी साइड वाली खिड़की क्यों बंद रखती हैं आप ? उसे तो खोलकर रखा करो कम से कम" ।


"

वो क्या है ना शर्माजी कि उस कमरे में एक कबूतर मर गया था। अब लड्डू के भैय्या ने पैरव्रत ले रखा है तो उसे बाहर कैसे लेकर जाते ? इसलिए हमने उस कमरे के सारे खिड़की दरवाजे बंद कर रखे हैं । तुम कहो तो खिड़की खोल दें आज । आपको भी मरे कबूतर की स्मैल लेनी हो तो बताओ " ?


"

नहीं ,नहीं , भाभीजी । उस खिड़की को तो बंद ही रहने दीजिए । हम तो पतंग उड़ाते उड़ाते ही आपके दर्शन कर लेंगे, बस" । घबराकर शर्मा जी बोले ।


"

एक बात कहूं , शर्माजी । अगर आप बुरा ना मानें तो "!


"

हां हां , क्यों नहीं भाभीजी । हम बुरा क्यों मानेंगे ? आपकी तो हर बात निराली होती है भाभीजी । आप कहिए तो सही" ।


"

वो क्या है ना शर्माजी , अगर आप उस मरे कबूतर को कमरे से उठाकर बाहर ले जाकर फेंक देते तो ..... ।"


इस बात को सुनकर

शर्माजी गश खाकर वहीं गिर पड़े । थोड़ी देर में उन्हें जब होश आया तो वे मरे कबूतर को फेंकने के लिए चल पड़े ।


धन्य है ऐसे पड़ौसियों को । हे प्रभु ऐसे नेकदिल, कर्मठ, मददगार पड़ौसी हर किसी को देना । हम ऐसे पड़ौसियों के जज्बे को सौ सौ बार सलाम करते हैं ।


आज से हमने ये सोचा है कि हम रोज एक ही वर्ग के योद्धाओं को सलामी देंगे जैसे आज पडौसियों की कर्मठता और नेकदिली को सलामी दी है । कल सोशल मीडिया वीरों को नमन करेंगे। अगर आपको "  हरिवचन " श्रृंखला पसंद आ रही हो तो कृपया लाइक, शेयर और कमेंट करना ना भूलें। इनसे लेखक को ऊर्जा मिलती रहती है।


हरिशंकर गोयल " हरि "
11.4 2020


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4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Jun-2022 12:14 PM

बहुत ही खूबसूरत

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Sona shayari

05-Jun-2022 07:21 AM

Bahut sundar rachna

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Saba Rahman

04-Jun-2022 11:48 PM

Nyc

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